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ROOH-E-SHAYRI~जब उसने कहा दो हर्फ मुझ पे भी लिख तो दो

जब उसने कहा दो हर्फ मुझ पे भी लिख तो दो,  फिर जाने क्या से क्या लिखता ही गया था मैं । ~अंजुम कानपुरी

ROOH-E-SHAYRI~आपकी राहों में चलना इस क़दर अच्छा लगा | हमने कुछ सोचा नहीं, की पैर में काँटा लगा ||

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आपकी राहों में चलना इस क़दर अच्छा लगा | हमने कुछ सोचा नहीं , की पैर में काँटा लगा || आपकी आँखों के अन्दर किस कदर गहराई है | दूर तक एक प्यार का बहता हुआ दरिया लगा || आपको देखा किया मैं , चाँद को देखा नहीं | आपका चेहरा तो मुझको चाँद से प्यारा लगा  || " रौनक " इतनी आग भर दी प्यार ने इस जिस्म में | ठंडा ठंडा सा बदन भी किस क़दर जलता लगा ||           - प्रदीप श्रीवास्तव ' रौनक़ कानपुरी '