MUSHAYRA
SHER
– E – NASHIST
कानपुर,
दिनांक १५, अप्रैल, २०१८ को साहेब स्मृति
फाउंडेशन की तत्त्वाधान में सुप्रसिद्ध सूफ़ी सन्त हज़रत शाह मंज़ूर आलम शाह
"मौजशाही" के छमाई उर्स के मुबारक़ मौके पर शेर-ए-नशिस्त (कवि सम्मेलन
एवम मुशायरा) का आयोजन किया । इस कि शुरुआत पंडित रामचंद्र दुबे जी और फ़ारूक़ जायसी
ने द्वीप प्रज्ज्वलित करके किया गया । इसके बाद हुज़ूर साहेब के बताए हुए कुछ खास
बातों की एक पुस्तिका का विमोचन शायर असलम महमूद ने किया ।
कार्यक्रम
का आगाज़ प्रदीप श्रीवास्तव ने अपनी ग़ज़ल
हर
एक दिल में बसा है तू ही, कहाँ
तू जलवानुमा नहीं है !
कहाँ
तेरी गुफ्तगू नहीं है, कहाँ
तेरा तज़करा नहीं है !!
से
किया
उसके
बाद चांदनी पांडेय ने ग़ज़ल
हमे
बर्बादियों पे मुस्कराना खूब आता है ।
अंधेरी
रात में दीपक जलाना खूब आता है ।।
अतीक़
फतेहपुरी ने ग़ज़ल
मेरे
लबों पे तेरा ज़िक्र जब आ जायेगा ।
शाखे
वफ़ा पर मेरी फूल खिला जाएगा ।।
शायर
असलम महमूद ने अपनी ग़ज़ल
एक
दिया ख्वाब की दहलीज़ पे रख छोड़ा है ।
जलता
रहता है उसे राह दिखाने के लिए ।।
श्रीमती
अलका मिश्र ने अपना कलाम
इशारा
जब भी बातिन का समझ आने लगेगा तब ।
हमारा
हर कदम उसकी तरफ बढ़ने लगेगा ख़ुद।।
फ़ारूक़
जायसी ने अपनी ग़ज़ल
जिस्मे
उसके हो न अक्स ।
ऐसे
हर एक आईने को तोड़ता जाता हूँ ।
आर
सी गुप्ता ने अपना गीत
एक
ख्वाब सा जीवन बीत गया
कल
देखा था सपना मैंने ।
इरशाद
कानपुरी ने इसी क्रम ने अपनी ग़ज़ल :
बलाएँ
छू नही सकती हैं मुझको ।
मेरा
सदक़ा उतारा है किसी ने ।।
बुलंदी
से से निहारा है किसी ने ।
मुझे
नज़रों से मारा है किसी ने ।।
पंडित
राम चन्द्र दुबे ने अपना भोजपुरी गीत :
पुन्नवासीके
चनरमा अइसन गोर हउवा हो ।
तोहरा
जोड़ कउनो नाहीं तू बेजोड़ हउवा हो ।।
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