"ओ भड़काऊ भूतपूर्व जी,मत विष की बरसात करो दिन को दिन ही रहने दो,मत इसको काली रात करो सत्य नहीं है वो जो तुझको तेरे ये समझाते हैं सत्य सनातन क्या है,हम डंके की चोट बताते हैं शस्य श्यामला इस धरती के जैसा कोई और नहीं भारत माता की गोदी से प्यारी कोई ठोर नहीं घर से बाहर ज़रा निकल के,अकल खुजाकर के पूछो हम कितने हैं यहां सुरक्षित हमसे आकर के पूछो पूछो हमसे ग़ैर मुल्क में मुस्लिम कैसे जीते हैं पाक़,सीरिया,फिलस्तीन में,खूं के आंसू पीते हैं लेबनान,टर्की,इराक़ में भीषण हाहाकार हुए अल बगदादी के हाथों,मस्जिद में नर संहार हुए इज़राइल की गली गली में मुस्लिम मारा जाता है अफ़ग़ानी सड़कों पर ज़िंदा शीश उतारा जाता है केवल भारत देश,जहां सिर गौरव से तन जाता है यही मुल्क है जहां मुसलमान राष्ट्रपति बन जाता है इसीलिए कहता हूं तुझसे,यों भड़काना बंद करो साक्ष्य हीन ऐसे जुमलों से,हमें लड़ाना बंद करो बंद करो नफ़रत की स्याही से लिक्खी पर्चेबाजी बंद करो इस हंगामे को,बंद करो ये लफ़्फाजी ऐसा कहके अमृत घट में तूने तो विष भर डाला जिस थाली में खाया तूने छेद उसी में कर डाला"