चतुर्थ राष्ट्रीय कवि सम्मेलन और मुशायरा, कानपुर
दिनांक 13 अक्तूबर 2018 को स्थानीय मरचेंट चेम्बर प्रेक्षागार, कानपुर में सुप्रसिद्ध सूफ़ी संत हज़रत
शाह मंज़ूर के चौथे मुबारक़ उर्स के मौके पर चतुर्थ राष्ट्रीय कवि सम्मेलन और
मुशायरे का आयोजन “ साहब स्मृति फ़ाउंडेशन “ की संरक्षण मे सम्पन्न
हुआ | साहब स्मृति फ़ाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्षा डॉक्टर इरा
मिश्रा जी आज हुज़ूर साहब के मुरीदों मुरीदों
को उनके
बताये हुए इंसानियत के रास्ते पर ले जारही हैं
। इस कार्यकतम कि शरुआत दिल्ली से आये जनाब ज़ियाउल हसन साहब ने शम्मा रौशन
करके किया । कार्यक्रम के प्रारम्भ में ईशा त्रिपाठी ने जहां संस्था के बारे में
विस्तृत जानकारी दी वहीं सम्मेलन के अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव ने शायरों और कवि
का परिचय और स्वागत किया ।
कार्यक्रम
की शुरुआत अतीक़ फतेहपुरी ने अपने कलाम "भटकने वालों को जाते जाते, निशाने मंज़िल दिख दिया है ।
इसके
बाद प्रदीप श्रीवास्तव "रौनक़ कानपुरी" ने अपना कलाम "
जहां
देखूं जिधर देखूं,
वहीं
दिखलाई देता है।
जहां
के ज़र्रे ज़र्रे में उसी का नूर मिलता है ।
अलका
मिश्र ने अपना गीत
"ग़ैब से पैग़ाम जारी हो गया ।
मुझपे
उसका रंग तारी हो गया ।।
फ़ारूक़
जायसी ने ग़ज़ल
उनको
सलाम लिख दूँ मैं
क़ाबे
एहतराम लिख दूं मैं
दिल्ली
से आई आना देहलवी ने अपना कलाम
किरण
देना, सुमन देना, चमन देना न धन देना ।
वतन
वालों मुझे तो सिर्फ इतना वचन देना ।
बुरहान
पुर से आये नईम राशिद ने अपनी ग़ज़ल
ये
इबादत ये नेकिया हैं फ़ुज़ूल ।
तेरा
लुकमा अगर हलाल नही ।
महाराष्ट्र
से आये अशफ़ाक़ निज़ामी ने कहां जाऊं तेरा छोड़ के मैं द्वार कहाँ जाऊं
कहां
जाऊं
डॉक्टर
कलीम कैसर, शफ़ीक़ आब्दी, मनीष शुक्ल,नाज़ प्रतापगढ़ी,असफाक निज़ामी मारुल, चांदनी पांडे, अनीता मौर्य, आदि शायरों ने कलाम पेश किया । कार्यक्रम की
निज़ामत बंगलोर से आये शफ़ीक़ आब्दी ने किया और निज़ामत इक़बाल खलिश ने किया। देर
रात सामीन मौजूद रहे | ये एक बहुत ही सफल
कार्यक्र्म रहा |
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