Geet_Na Tum Aaye Magar Pratidin, Tumhara Swapn Aata Hai_ना तुम आये मगर_C...

अकथ अज्ञात पीड़ा से भरा मेरा मन छटपटाता है,

ना तुम आये मगर प्रतिदिन तुम्हारा स्वप्न आता है !

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बसंती मौसमो वाले, सुहाने दिन मधुर रातें,

नयन की व्यंजना से तृप्ति की वे अनकही बातें,

कोई उन्मुक्त पंछी पिंजड़े में कसमसाता है,

ना तुम आये मगर प्रतिदिन तुम्हारा स्वप्न आता है !

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तुम्हारी उष्मा मादक प्रणय प्रतिदान के वे पल,

नहाई चांदनी सादात मधुमात नयन चंचल,

वही कमनीय छवि का दीप उर में जगमगाता है,

ना तुम आये मगर प्रतिदिन तुम्हारा स्वप्न आता है !

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खिले मुरझाये फिर फिर लग रहे हैं रूप के मेले,

ग्रसित भ्रमरों ने कलियों संग मादक खेल हैं खेले,

मुझे हर दृश्य में तुमसे मिलन का भ्रम सताता है,

ना तुम आये मगर प्रतिदिन तुम्हारा स्वप्न आता है !

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कभी लावण्य के सैलाब में तुमने डुबाया था,

तुम्हारा वो मदिर उन्माद नस नस में समाया था,

कोई विश्वास दे कर यूँ नहीं विषघट पिलाता है,

ना तुम आये मगर प्रतिदिन तुम्हारा स्वप्न आता है !

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हृदय की झील के तल पर तरंगो सी उठें यादें,

तुम्हारे अनगिनित प्रतिबिम्ब चारो ओर पहरा दें,

फंसा तूफ़ान में जलयान सा मन डगमगाता है,

ना तुम आये मगर प्रतिदिन तुम्हारा स्वप्न आता है !

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तुम्हारे स्नेह का अम्रत ना पीता तो भला होता,

ना तो ये वेदना होती ना जीवन भार सा ढोता,

जिन्हें तट मिल गया उनको भला कोई डुबाता है,

ना तुम आये मगर प्रतिदिन तुम्हारा स्वप्न आता है !

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कभी मुरझा न पाएगा तुम्हारे स्नेह का शतदल,

हमारी टूटती हर आस को देता नया संबल,

मेरा हर गीत तेरे नाम को ही गुनगुनाता है,

ना तुम आये मगर प्रतिदिन तुम्हारा स्वप्न आता है !

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मेरे आहत स्वरों से मोम बन पाषाण पिघलेगा,

मगर क्या दर्द से मेरे न उनका मन पसीजेगा,

कोई मन मीत ऐसे तो नहीं आँखें चुराता है,

ना तुम आये मगर प्रतिदिन तुम्हारा स्वप्न आता है !

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कवि – चन्द्र मोहन पाण्डेय

शेरी नशिस्त – २२/१२/२०००

स्थान – खानकाह, कानपुर 

https://youtu.be/r-XyH0rqrRU


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