SHAYARI 02-11-2022
मेरे
दुश्मन परेशां है मेरी माँ की दुआओ से, .
वो जब
भी वार करते है तो खंजर टूट जाता है !
लोग
कहते हैं समझो तो खामोशियाँ भी बोलती हैं,
मैं अरसे
से ख़ामोश हूँ वो
बरसों से बेख़बर हैं !
गुजर
चुका हूं कई बार ऐसे दौर से !
कई
गुजरे होते तो गुजर ही गए होते !!
हम रातों
को उठ उठ के जिन के लिए रोते हैं
वो
ग़ैर की बाँहों में आराम से सोते हैं
हम
अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते
बेचैन
सी पलकों में मोती से पिरोते हैं
होता
चला आया है बे-दर्द ज़माने में
सच्चाई
की राहों में काँटे सभी बोते हैं
अंदाज़-ए-सितम
उन का देखे तो कोई 'हसरत'
मिलने
को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं
- हसरत जयपुरी
बात
दिल की सुन सके जो ऐसा इक मीत दे दो,
प्रीत
को जो रीत कर दे होठों को इक गीत दे दो,
कौन
अपना कौन पराया ये न जाने दिल मेरा,
दिल
की वीणा कर दे झंकृत ऐसा इक संगीत दे दो।
-राकेश नमित
कभी संभले तो
कभी बिखरते आये
हम !
जिंदगी
के हर मोड़ पर खुद में सिमटते आये हम !!
यूँ तो
जमाना कभी खरीद नहीं
सकता हमें !
मगर
प्यार के दो लफ्जो में सदा बिकते आये हम !!
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