Geet- Kissa-e-dard

🌹गीत 🌹
क़िस्सा-ए-दर्द  भुलाने  को  कहाँ  जाएँ हम।
ग़म  की  रूदाद  सुनाने  को कहाँ जाएँ हम।

उनके जाते ही बहारों ने भी रुख़ फेर लिया।
ऐसा  लगता है ज़माने ने ही रुख़ फेर लिया।

बिगड़ी  तक़दीर  बनाने  को कहाँ जाएँ हम।
ग़म  की  रूदाद  सुनाने  को कहाँ जाएँ हम।

अश्क  आँखों  के  वो दामन में समो लेते थे।
वो  गले  मिल  के  ज़रा  देर  को  रो लेते थे।

अब  वही अश्क  छुपाने को कहाँ जाएँ हम।
ग़म  की  रूदाद  सुनाने  को कहाँ जाएँ हम।

आँख   फेरी  है  मसीह़ा  ने  हमारे  जब  से।
रूह़  बेचैन  है  दिल  भी  है  परेशाँ  तब  से।

दर्दे  दिल अपना दिखाने को कहाँ जाएँ हम।
ग़म  की  रूदाद  सुनाने  को कहाँ जाएँ हम।

क़िस्सा-ए-दर्द  भुलाने  को  कहाँ  जाएँ हम।
ग़म  की  रूदाद  सुनाने  को कहाँ जाएँ हम।

सरफ़राज़ हुसैन "फ़राज़ पीपलसाना यू.पी.।

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