MERI HAYAAT KA WO MUQADDAR BANA RAHA
MERI
HAYAAT KA WO MUQADDAR BANA RAHA
मेरी
हयात का वो मुकद्दर बना रहा !
जाने वो कौन था जो नज़र मे बसा रहा !!
बुलबुल चहक के फूल के क़दमो पे गिर पड़ा !
सर इश्क़ का हमेशा तमाशा बना रहा !
मिल जाए उनका दर तो कहो जिंदगी मिली !
वरना सरे हयात किसे फ़ायदा रहा !!
ऐसा करम की ख़ाक दरे मैकदा बना !
ये आबरू मिली तो फ़लक देखता रहा !!
उन तक कभी ये ख़ाक भी पहुंचे ख़ुदा करे !
मैं तो दुआ हमेशा यही मांगता रहा !!
~ हज़रत शाह मंजूर आलम “कलंदर
मौजशाही”
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