Shayri - bataye koi kahan
बताये कोई कहाँ पर नहीं हूँ मैं,
किसी के वास्ते यहाँ पर नहीं हूँ मैं
बनाया जिनको बड़ी हसरतों से था,
उसी की शायद ज़ुबाँ पर नहीं हूँ मैं
हिदायतें भी दे रखी थी मगर हमने ,
मगर किसी भी रहनुमा पर नहीं हूँ मै
बना है काफिर अभी जो भला क्या करें,
इस कदर रूठा बयाँ पर नहीं हूँ मैं
हमेशा तेरे आसपास रहता हूँ ,
एक मैं ही तेरी निशाँ पर नहीं हूँ मै
देख ले अब भी छुपा हूँ हरेक शय में
जरा देखो कारवां में नहीं हूँ मैं
-रामनाथ साहू " ननकी "
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