नवगीत - गावों की चौपालों ने बतियाना छोड़ दिया - कवि जयराम "जय" GEET -GAWO...
गीत
गावों की चौपालों ने बतियाना छोड़ दिया !
इसीलिए तो खुशियों ने मुसकाना छोड़ दिया !!
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तोता मैना राजा रानी, जलते हुये अलाव !
दुर्लभ है सब यहाँ बतवो कहाँ नेह का भाव !
रचे बसे त्योहारों ने घर आना छोड़ दिया !
इसी लिए तो खुशियों ने मुसकाना छोड़ दिया
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लिपे पुते चेहरों की रौनक़ दिखती है अब गुम !
हम दिल वाले राजी है तो क्या कर लोगे तुम !
दुल्हन ने घूँघट करना शरमाना छोड़ दिया !
इसी लिए तो खुशियों ने मुसकाना छोड़ दिया
!!
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राग नहीं अनुराग नहीं है कोई आँगन मे !
आँख का पानी सूख गया है प्रिय मन भावन मे !
भाभी की हंसी ठिठोली, हड़काना छोड़ दिया !
इसी लिए तो खुशियों ने मुसकाना छोड़ दिया
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दरवाजे का पेड़ पुराना गुमसुम रहता है !
कोई आए कुछ कह जाये, सब चुप सहता है !
रूठ गई गौरइया आबो दान छड़ो दिया !
इसी लिए तो खुशियों ने मुसकाना छोड़ दिया
!!
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बहुत दिनों से खोज रहा है, खुशियाँ चौकीदार !
अधरों पर मुसकाने क्यों हैं चिपकी हुई उधार !
मिल के घर बनवाना छ्प्पर छाना छोड़ दिया !
इसी लिए तो खुशियों ने मुसकाना छोड़ दिया
!!
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= = = =
कवि – जयराम “जय”,
कानपुर
कानपुर
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