रूहे शायरी
तेरी गली को छोड़ के जाना तो है नहीं
दुनिया में कोई और ठिकाना तो है नहीं
تیری گلی کو چھوڑ کے جانا تو ہے نہیں
دنیا میں کوئی اور ٹھکانا تو ہے نہیں
जी चाहता है काश वो मिल जाए राह में
हालाँकि मोजज़ों का ज़माना तो है नहीं
جی چاہتا ہے کاش وہ مل جائے راہ میں
حالانکہ معجزوں کا زمانا تو ہے نہیں
इस घर में उस के नाम का कमरा है आज भी
जिस को कभी भी लौट के आना तो है नहीं
اس گھر میں اس کے نام کا کمرہ ہے آج بھی
جس کو کبھی بھی لوٹ کے آنا تو ہے نہیں
शायद वो रहम खा के मिरी जान बख़्श दे
क़ातिल है कोई दोस्त पुराना तो है नहीं
شاید وہ رحم کھا کے مری جان بخش دے
قاتل ہے کوئی دوست پرانا تو ہے نہیں
अश्कों को 'रूही' ख़र्च करो देख-भाल के
आँखों के पास कोई ख़ज़ाना तो है नहीं
اشکوں کو روحیؔ خرچ کرو دیکھ بھال کے
آنکھوں کے پاس کوئی خزانا تو ہے نہیں
रेहाना रूही
ریحانہ روحی
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बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
हम बे-घरों का कोई ठिकाना तो है नहीं
بیٹھے ہیں چین سے کہیں جانا تو ہے نہیں
ہم بے گھروں کا کوئی ٹھکانا تو ہے نہیں
तुम भी हो बीते वक़्त के मानिंद हू-ब-हू
तुम ने भी याद आना है आना तो है नहीं
تم بھی ہو بیتے وقت کے مانند ہو بہو
تم نے بھی یاد آنا ہے آنا تو ہے نہیں
अहद-ए-वफ़ा से किस लिए ख़ाइफ़ हो मेरी जान
कर लो कि तुम ने अहद निभाना तो है नहीं
عہد وفا سے کس لیے خائف ہو میری جان
کر لو کہ تم نے عہد نبھانا تو ہے نہیں
वो जो हमें अज़ीज़ है कैसा है कौन है
क्यूँ पूछते हो हम ने बताना तो है नहीं
وہ جو ہمیں عزیز ہے کیسا ہے کون ہے
کیوں پوچھتے ہو ہم نے بتانا تو ہے نہیں
दुनिया हम अहल-ए-इश्क़ पे क्यूँ फेंकती है जाल
हम ने तिरे फ़रेब में आना तो है नहीं
دنیا ہم اہل عشق پہ کیوں پھینکتی ہے جال
ہم نے ترے فریب میں آنا تو ہے نہیں
वो इश्क़ तो करेगा मगर देख भाल के
'फ़ारिस' वो तेरे जैसा दिवाना तो है नहीं
وہ عشق تو کرے گا مگر دیکھ بھال کے
فارسؔ وہ تیرے جیسا دوانہ تو ہے نہیں
रहमान फ़ारिस
رحمان فارس
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