मेरा नग़्मा सूना था याद होगा , तुम्हे अच्छा लगा था याद होगा , वो सावन का महीना और झूले , तुम्हे कुछ कुछ हुआ था याद होगा , ~ जिगर श्योरपुरी - - - - नज़र आज़माने को जी चाहता है , नए गुल खिलने को जी चाहता है , ज़माना मेरा आज़माया हुआ है , तुझे आज़माने को जी चाहता है ! ~ सिकंदर अली वज्द - - - - ज़िंदगी और मौत में इतना ही अंतर है जिगर , इसमें इंसां रोज़ ही मरता है उसमे एक बार ! ~ जिगर श्योरपुरी - - - - साथ में भीड़ लगाने की ज़रूरत क्या है , हो यक़ीं ख़ुद पे ज़माने की ज़रूरत क्या है ! सर उठाकर के चलो गरचे गुनहगार न हो , इस तरह नज़रें चुराने की ज़रूरत क्या है ! ~ जिगर श्योरपुरी - - - - ये ज़माना तो मोहब्बत को ख़ता कहता है , अपनी ज़िद ये है हमें ये ही ख़ता करना है ! साक़िया खोल दे इस मयकदे के दरवाज़े , हमको इन मस्त निगाहों से नशा करना है ! ~ जिगर श्योरपुरी