बंदउँ सीता राम
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥
जो वाणी और उसके अर्थ तथा जल और जल की लहर के समान कहने में अलग-अलग हैं, परन्तु वास्तव में अभिन्न यानी एक हैं. उन श्रीसीतारामजी के चरणों की मैं वंदना करता हूं जिन्हें दीन-दुःखी बहुत ही प्रिय हैं ।
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