SHAYARI 27-12-2023
उनको भुले हूए अपने ही
सितम याद आए
जब उन्हें गैर ने
तड़पाया तो हम याद आए।
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काश कभी हमारी भी ऐसी
मुलाकात हो जाए...
मैं ज़मीं बंजर बनूँ तू
मौसम बरसात हो जाए...
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जिसने हालात पिये हों...
उन्हे ज़हर का खौफ़
कहाँ...
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जो उड़ गए परिन्दे उनका
अफ़सोस क्यों करें...
यहाँ तो पाले हुए भी
गैरों की छतों पर उतरते हैं...
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कितने अजीब होते हैं कुछ
बंधन...
कोई डोर नहीं फिर भी बंध
जाते हैं मन...
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ये दिसम्बर तो बातोँ का
मौसम था...
दुआ करो कि जनवरी बांहोँ
का मौसम हो...
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क्यूँ नुमाइश करूँ अपने
माथे पे शिकन की...
मैं अक्सर मुस्कुरा के
इन्हें मिटा देती हूँ...
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जुबाँ को रोको तो आँखो
से झलक आता है...
ये जज्बा-ऐ-इश्क है, इसे सब्र कहाँ आता है...
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तेरे उतारे हुए दिन पहन
के अब भी मैं...
तेरी महक में कई रोज़
गुज़ार देती हूँ...
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खंजर की क्या मज़ाल, कि एक ज़ख्म कर सके..
तेरा ही ख़याल है,कि बार-बार घायल हुए हैं
हम...
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