SHAYARI
इस खोज मे मत उलझें कि भगवान
हैं या नहीं !
खोज यह रखें कि हम खुद
इन्सान हैं या नही !!
मिट्टी का जिस्म लेकर पानी के
घर में हूँ !
मंजिल है मौत
मेरी और मैं
हरपल सफ़र में हूँ !!
होगा कत्ल मेरा पता है
मुझको पर !
ये मालूम नहीं कि मैं किस क़ातिल की नज़र में हूँ !!
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जब किस्मत और हालात खराब हों तो !
बहुत कुछ सुनना और सहना पडता है !!
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यहां तो खुद से ही मिले जमाना हो गया साहब !
और लोग कहते हैं कि हमें भूल गए हो तुम !!
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हम जा रहे हैं वहां जहाँ दिल की हो क़दर !
बैठे रहो तुम अपनी अदायें लिये हुए !!
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शौक पालने की उम्र मे जो सब्र करना सीख गया !
जिन्दगी की आधी जंग वो ऐसे ही जीत गया !!
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