SHAYARI 26.12.2023

रहने दो मुझको उलझा हुआ सा तुझसे,

सुना है सुलझाने से धागे अलग हो जाते हैं !

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नजर_अंदाज तुम करो अपने हिसाब से,

जब हम करेंगे तब बेहिसाब_करेंगे ।।

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उसके दिल में थोड़ी सी जगह माँगी थी मुसाफिरों की तरह !

उसने तन्हाईयों का एक शहर मेरे नाम कर दिया !! 

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ढली तो बस उम्र है तुम बिन

 चाहत तो आज भी बरक़रार है

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सबके लिए किनारे पे होता नहीं कोई,

कुछ लोग डूब जाते हैं पुकारे बगैर भी..!

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ज़्यादा अच्छा होना भी गुनाह ही होता है,

पता ही नहीं चलता लोग कदर कर रहे हैं या इस्तेमाल..!!

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एक खत सुर्ख लबों से चूमकर,

दो लफ्ज़ उसमें प्यार के लिख ढूंढकर

देने हमें खुद आओ तो कभी बाम पर,

लगे भी,चाँद उतरा है जाम पर

#अशोक_मसरूफ़

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