इन अश्क़ों को पानी कहना, भूल नहीं नादानी है, तन-मन में जो आग लगा दे, ये तो ऐसा पानी है ! कैसे तुमसे इश्क़ हुआ था, क्या क्या हम पर बीती है, सुन लो तो सच्चा अफसाना, वरना एक कहानी है ! -कँवर महेंद्र सिंह बेदी ---- इस सोच में बैठा हूँ, क्या ग़म उसे पहुंचा है, बिखरी हुई जुल्फें हैं, उतरा हुआ चेहरा है ! जिस फूल को तितली ने, चूमा मेरी जानिब से, ज़ालिम ने उस कलि को, मसला नहीं रौंदा है ! ---- इक न इक शम्मआ अँधेरे में जलाये रखिये, सुबह होने को है, माहौल बनाये रखिये !!