शायरी

हैरां हूँ तुझे मस्जिद में देख के ग़ालिब !
ऐसा भी क्या हुआ जो ख़ुदा याद आ गया !!
(जनाब शिनावर बशीर के साथ फुर्सत का एक लम्हा )

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