SHAYARI
ले चल उसी बचपन में ए ज़िंदगी !
जहां ना कोई जरूरी था ना कोई जरूरत थी !!
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ज़िंदगी यूँही बहुत कम है मोहब्बत के लिए,
रूठ कर वक़्त गँवाने की ज़रूरत क्या है !
अल्फाजों का भी अहम किरदार रहा है दूरियां बढ़ाने में,
कभी वो समझ नही पाएं, कभी हम समझा नही पाएं !
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