SHAYARI
यूँ ही
बे-सबब न फिरा करो,
कोई शाम घर
में भी रहा करो !
वो ग़ज़ल की
सच्ची किताब है,
उसे
चुपके-चुपके पढ़ा करो !
कितनी मिलती
है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी,
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे !
अपनी महफिल
में दोस्त क्या,
दुश्मनों को भी बुलाना पड़ता है !
किसी से खुशी बाटनी होती है,
किसी को जलाना भी पड़ता है !
अंदर तक
तोड़ देते हैं आंसू जो,
रात के अंधेरे में चुपचाप निकलते हैं !
बड़े चुपचाप
से बैठे हो क्या बात हो गई,
शिकायत है
हमसे या किसी और से मुलाकात हो गई !
आप के बाद
हर घड़ी हम ने
आप के साथ
ही गुज़ारी है
~ गुलज़ार
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