SHAYARI

कोई हाथ भी न मिलाएगा,

जो गले मिलोगे तपाक से

ये नये मिज़ाज का शहर है

ज़रा फ़ासले से मिला करो

ढलता सूरज, फैला जंगल, रस्ता गुम,

हमसे पूछो, कैसा आलम होता है !

खुदा करे वो मोहब्बत जो तेरे नाम से है,

सौ साल गुजरने पर भी जवान ही रहे !

बेशक बुलंदियों में यकीन रखते हैं हम,

 मगर पांव के नीचे जमीन भी रखते हैं हम

अब नही कोई बात खतरे की,

यहाँ सभी को सब से खतरा है ।।

आदते  कुछ अलग हैं मेरी दुनिया वालों से,

 दोस्त कम रखता हूं, पर लाजवाब रखता हूं !

ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे नवाई* की
बुझा चराग़ तो जुगनू ने रहनुमाई* की
( इक़बाल अशहर )












 

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