SHAYARI
सीखा देते हैं सारे फ़न उन्हें परवाज़ के लेकिन,
परिंदे अपने बच्चों को कभी मसकन नहीं देते !
मसकन-घर
हक़ीक़त थी, ख़्वाब था या तुम थे,
जो भी था, हम तो तुम्ही में गुम थे !
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अगर बिकने
पे आ जाओ तो घट जाते हैं दाम अक़सर ,
न बिकने का
इरादा हो तो क़ीमत और बढ़ती है ।
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तेरी यादों
को पसंद आ गई है मेरी आंखों की नमी,
हंसना चाहूं
भी तो रूला देती है तेरी कमी !
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