SHAYRI

मुस्करा के मिले जो गले से कोई !
तो समझ लीजिये क़त्ल होने को है !!
क्या ख़बर है के ख़न्जर छिपे हैं कहां !
आस्तीनों का कोई भरोसा नही !!

रुकूँ तो मंज़िलें ही मंज़िलें हैं !

चलूँ तो रास्ता कोई नहीं है !!
वो साथ न दे तो धूप तो क्या !
साये में भी चलना मुश्किल है !! 

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