SHAYARI 02-04-2022
ये कश्मकश है, कि ज़िंदगी कैसे बसर करें !
पैरों को मोड़ कर सोयें या चादर बड़ी करें !!
मुद्दतों बाद जो
उसने आवाज़ दी मुझे,
कदमों की क्या
औकात थी साँसें भी ठहर गयीं !
मत पूछ दौर-ए-वफ़ा ए दोस्त !
ज़हर-ए-ज़ाम घूंट-घूंट पी रहा हूँ
कहीं
मिलेगी जिंदगी में प्रशंसा तो,
कहीं नाराजगियों का बहाव मिलेगा
कहीं
मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो,
कहीं भावनाओं में दुर्भाव मिलेगा
तू
चलाचल राही अपने कर्मपथ पे,
जैसा तेरा भाव वैसा प्रभाव मिलेगा।
जो कभी लिपट जाया करती थी बादलों के गरजने पर,
वो आज बादलों से भी ज्यादा गरजती है !
मिट्टी मिट्टी हो गया वो शख्स !
जिसको नाज़ बहुत था अपने होने पर !
बचपन साथ रखियेगा जिंदगी की शाम में
उम्र महसूस ही न होगी सफ़र के मुकाम में !!
बिछे हुए अखबार की पुरानी खबर पढ़ रहा था !
नजर तारीख पे थी यादों से लड़ रहा था !!
आज तोहफा लाने निकला था शहर में तेरे लिए,
कम्बखत खुद से सस्ता कुछ ना मिला !!
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