Kisko Qatil Main Kahun_ Jagjit Singh Live At Dubai
किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को
मसीहा समझूँ
सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या
समझूँ
वो भी क्या दिन थे के हर वहम यक़ीं होता
था
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उट्ठे
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ
ज़ुल्म ये है के है यकता तेरी
बेगानारवी
लुत्फ़ ये है के मैं अब तक तुझे अपना समझूँ
(यकता = अनुपम, अद्धितीय, बेजोड़), (बेगानारवी
= परायापन)
- अहमद नदीम क़ासमी
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