SHAYARI 27-08-2022
आँधियाँ कुचल देती है मग़रूर दरख़्तों को...
शाख़ वही बचती है जो लचक जाया करती है..!!
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मौजों से खेलना तो सागर का शौक है
लगती है कितनी चोट किनारे से पूछिए
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रेत पर नाम लिखते ही मिट गया !
जैसे जिम्मेदार होते ही बचपन छिन गया !!
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ये समुंदर सिखा दे मुझे भी यह हुनर,
कैसे लड़ते है तूफानों से अंदर ही अंदर !
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जिन्दगी एक आईना है यहां पर हर कुछ छुपाना पड़ता है !
दिल में हों लाख गम फिर भी महफिल में मुस्कुराना पड़ता है !!
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जिसकी जरूरत होती है, उसी को याद करते है लोग !
बिना मतलब के अब कहां बात करते है लोग !!
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