SHAYARI 17-06-2023
सहरा में जब भी ख़ुद को पुकारा तो डर लगा,
थे क़ाफ़िले की भीड़ में तनहा तो डर लगा।
पर्दा रहा तो देखने की आरज़ू रही,
हटने का बस गुमान हुआ था तो डर लगा।
- स्वरुप
सोने वालों को क्या ख़बर ऐ हिज्र !
क्या हुआ एक शब में क्या न हुआ !!
- साकिब लखनवी
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बिनती
है हाथ जोड़ के आलम पनाह से !
बचिये
दिलों को तोड़ने वाले गुनाह से !!
-असद
अजमेरी
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चाहता कोई नहीं साहिबे इमां होना !
दौरे हाजिर में हुआ जुर्म अब इंसां होना !!
रुबरु हो के तेरा मुझसे पशेमां होना !
आके पहलू में वो जुल्फों का परेशां होना !!
- शंकर शरण काफ़िर
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बोसा देने में जो पूछा कि क्या बिगड़ता है,
बोले आप ही कहो कि लेने में क्या मिलता है !!
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कौन छूकर गुज़रा की खिले जाते हैं,
इतने सरशार तो पहले न थे होटों के गुलाब !
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