SHRADDHANJALI
दुखद और द्रवित करने वाले दुखद पल,जिसमें कानपुर रंगमंच के दो वरिष्ठ कलाकार और रंगमंच को समर्पित , साथियों का एक के बाद एक दिन में साथ छोड़ना और बिछड़ना,बहुत ही दुखदाई है।
वरिष्ठतम रंगकर्मी ,भाई पीर गुलाम सिंह, जिनका योगदान प्रकाश संचालन और प्रकाश परिकल्पना में रहा है।संगीत नाटक अकादमी द्वारा उन्हें इस विधा में पुरस्कार दे कर सम्मानित भी किया गया,जो उनकी अद्वितीय क्षमता को दर्शाता है।
पीर भाई कला के साथ ही सहृदय और विनम्र व्यक्तिव भी थे।रंगमंच के लिए उनका समर्पण अलौकिक एवं अवस्मरणीय था।रंगमंच के प्रति समर्पण ऐसा की, किसी भी संस्था,जो केवल रंगमंच को समर्पित हो और प्रकाश व्यवस्था के लिए पीर भाई को संपर्क करे, तो फिर वो पूर्ण निष्ठा के साथ अपना पूरा समय देकर,नाटक के प्रकाश की परिकल्पना करने से लेकर संचालन तक, समर्पण के साथ करते थे,फिर चाहे उनको इसका पारितोषिक उन्हें मिले अथवा न मिले। उन्होंने कभी इसे लेकर किसी भी संस्था से कभी भी कोई शिकायत नही करी,जिसने दे दिए तो ठीक, नहीं दिए तो कोई शिकायत कभी नही की। पुनः फिर मदद मांगिए,फिर उसी समर्पण भाव से कार्य को तैयार,,यह था उनका रंगमंच को निस्वार्थ डीवोशन। दोनों रंगकर्मियों को भाव पूर्ण श्रद्धांजलि
वरिष्ठतम रंगकर्मी ,भाई पीर गुलाम सिंह, जिनका योगदान प्रकाश संचालन और प्रकाश परिकल्पना में रहा है।संगीत नाटक अकादमी द्वारा उन्हें इस विधा में पुरस्कार दे कर सम्मानित भी किया गया,जो उनकी अद्वितीय क्षमता को दर्शाता है।
पीर भाई कला के साथ ही सहृदय और विनम्र व्यक्तिव भी थे।रंगमंच के लिए उनका समर्पण अलौकिक एवं अवस्मरणीय था।रंगमंच के प्रति समर्पण ऐसा की, किसी भी संस्था,जो केवल रंगमंच को समर्पित हो और प्रकाश व्यवस्था के लिए पीर भाई को संपर्क करे, तो फिर वो पूर्ण निष्ठा के साथ अपना पूरा समय देकर,नाटक के प्रकाश की परिकल्पना करने से लेकर संचालन तक, समर्पण के साथ करते थे,फिर चाहे उनको इसका पारितोषिक उन्हें मिले अथवा न मिले। उन्होंने कभी इसे लेकर किसी भी संस्था से कभी भी कोई शिकायत नही करी,जिसने दे दिए तो ठीक, नहीं दिए तो कोई शिकायत कभी नही की। पुनः फिर मदद मांगिए,फिर उसी समर्पण भाव से कार्य को तैयार,,यह था उनका रंगमंच को निस्वार्थ डीवोशन। दोनों रंगकर्मियों को भाव पूर्ण श्रद्धांजलि
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