SHANI DEV

शनिदेव कश्यप वंश की परंपरा में भगवान सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र हैं। शनिदेव को सूर्य पुत्र के साथ साथ पितृ शत्रु भी कहा जाता है। शनिदेव के भाई-बहन मृत्यु देव यमराज, पवित्र नदी यमुना व क्रूर स्वभाव की भद्रा हैं। शनिदेव का विवाह चित्ररथ की बड़ी पुत्री से हुआ था। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनिदेव का जन्म उत्सव मनाया जाता है। शनिदेव का जन्म स्थान सौराष्ट्र में शिंगणापुर माना गया है। हनुमान, भैरव, बुध व राहू को वे अपना मित्र मानते हैं। शनिदेव का वाहन गिद्ध है और उनका रथ लोहे का बना हुआ है। शनि देव के दस नाम: शनिदेव के 10 अन्य प्रसिद्ध नाम हैं: यम, बभ्रु, पिप्पलाश्रय, कोणस्थ, सौरि, शनैश्चर, कृष्ण, रोद्रान्तक, मंद, पिंगल। 

 जब शनिदेव अपनी माता छाया के गर्भ में थे, तब शिव भक्तिनी माता ने तेजस्वी पुत्र की कामना हेतु भगवान शिव की घोर तपस्या की जिस कारण धूप व गर्मी की तपन में शनि का रंग गर्भ में ही काला हो गया लेकिन मां के इसी तप ने शनिदेव को अपार शक्ति भी दी।

 शनि एक धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। पुराणों में यह कहा गया है कि शनिदेव लंगड़ाकर चलते हैं जिस कारण उनकी गति धीमी है। उन्हें एक राशि को पार करने में लगभग ढा़ई वर्ष का समय लगता है। शनिदेव लंगड़ाकर क्यों चलते हैं i इस विषय पर शास्त्रों में कथाएं प्रचलित हैं - एक बार सूर्य देव का तेज सहन न कर पाने की वजह से उनकी 

 स्कन्द पुराण में वृतांत है कि एक बार शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव से कहा कि मैं ऐसा पद प्राप्त करना चाहता हूं जो आज तक किसी ने प्राप्त न किया हो, मेरी शक्ति आप से सात गुणा अधिक हो, मेरे वेग का सामना कोई देव-दानव-साधक आदि न कर पायें और मुझे मेरे आराध्य श्रीकृष्ण के दर्शन हों। शनिदेव की यह अभिलाषा सुन सूर्यदेव गदगद हुये और कहा कि मैं भी यही चाहता हूं कि मेरा पुत्र मुझसे भी अधिक महान हो, परंतु इसके लिये तुम्हें तप करना पडे़गा और तप करने के लिये तुम काशी चले जाओ, वहां भगवान शंकर का घनघोर तप करो और शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शंकर से अपने मनवांछित फलों का आशीर्वाद लो। शनिदेव ने अपनी पिता की आज्ञानुसार वैसा ही किया और तप करने के बाद वर्तमान में भी मौजूद शिवलिंग की स्थापना की। इस प्रकार काशी विश्वनाथ मंदिर के स्थल पर शनिदेव को भगवान शंकर से आशीर्वाद के रुप में सर्वोपरि पद मिला। निष्कर्ष: जीवन के अच्छे समय में भी शनिदेव का गुणगान करो। आपातकाल में शनिदेव के दर्शन व दान करो। पीड़ादायक समय में शनिदेव की पूजा करो। दुखद प्रसंग में भी शनिदेव पर विश्वास रखो।

 

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