DIL-O-DIMAG KO RO LOONGA AAH KAR LOONGA - AKHTAR SHEERANI
DIL-O-DIMAG KO RO LOONGA AAH KAR LOONGA
दिलो दिमाग़ को रो लूँगा, आह कर लूँगा !
तुम्हारे इश्क़ मे सब कुछ तबाह कर लूँगा !!
अगर मुझे न मिली तुम, तुम्हारे सर
की क़सम !
मैं अपनी सारी जवानी तबाह कर
लूंगा !!
मुझे जो दैरो हरम मे कहीं जगह
न मिली !
तिरे ख़्याल ही को सिज्दागाह कर लूँगा !!
जो तुमसे कर दिया महरूम आसमां
ने मुझे !
मैं अपनी जिंदगी सर्फ़े गुनाह
कर लूँगा !!
रक़ीब से भी मिलुंगा तुम्हारे
हुक्म पे मैं !
जो अब तलक न किया था, अब आह कर लूँगा
!!
तुम्हारी याद मे मैं काट दूँगा
हश्र के दिन !
तुम्हारे हिज्र मे रातें सियाह कर लूँगा !!
किसी हसीना के मासूम इश्क़ मे
अख़्तर !
जवानी क्या है, मैं सब कुछ
तबाह कर लूँगा !!
शायर- अख़्तर शीरानी
पूरा नाम : मोहम्मद दाऊद ख़ान
दैरो हरम – मंदिर मस्जिद, सिजदगाह-पुजयनीय
स्थल , महरूम – वंचित, आसमां – भाग्य , सर्फ़े गुनाह-पापों को समर्पित, हश्र-प्रलय
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