Kah Rahi Hai Hashr Mein Wo Ankh Sharmaai Hui - Ameer Minai
KAH RAHI HAI HASHR ME WO
AANKH SHARMAI HUI – AMIIR MINAAI
कह रही है हश्र मे वो आँख शरमाई हुई !
हाय कैसी इस भरी महफिल मे रुसवाई हुई !!
आईने
मे हर अदा को देख कर कहते हैं वो !
आज
देखा चाहिए किस किस की है आई हुई !!
कैफ़े
मस्ती मे भी रहता है ये जोबन का लिहाज़ !
उनको
अंगड़ाई भी आती है तो शर्माई हुई !!
वस्ल
मे खाली हुई अगियार से महफिल तो क्या !
श्रम
भी आए तो मैं जानू कि तनहाई हुई !!
मैं
तो राज़े दिल छुपाऊँ पर छुपा रहने भी दे !
जान
कि दुश्मन ये ज़ालिम आँख ललचाई हुई !!
गर्द
उडी आशिक्की तुरबत से तो झुँझला कर कहा !
वाह
सर चढ़ने लगी पाँव कि ठुकराई हुई !!
~
अमीर मीनाई
पूरा
नाम – मुंशी अमीर अहमद
जन्म
– 1828, लखनऊ
मृत्यु
: 1900, हैदराबाद
Comments
Post a Comment