कंद लब उनका जो बोसा बेतक़ल्लुफ़ ले लिया,

गालियाँ खाईं बला से मुंह तो मीठा हो गया !

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हम क्यूँ कर कहें की बोसा दो,

गर इनायत करो इनायत हो !

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एक बोसे के तलबगार हैं हम,

और मांगे तो गुनाहगार हैं हम !

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आप इस दिल की अदा से अभी वाक़िफ़ ही नहीं !

जल तो जाता है मगर ख़ाक नहीं हो सकता ! !

~ शफ़ीक़ बरेलवी

बोसा मुझको नहीं देते तो झिड़की ही सही,

खुल नहीं सकता दरवाज़ा अगर तो खिड़की ही सही !!

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अधूरी छोड़ के तस्वीर मर गया वो 'ज़ेब'

कोई भी रंग मयस्सर था लहू के सिवा !!

~ज़ेब ग़ौरी

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कैसे थे लोग जिनकी ज़बानों में नूर था !

अब तो तमाम झूट है सच्चाइयों में भी !!

~ जमील मलिक

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गुज़र जाते हैं खूबसूरत लम्हें यूंही मुसाफिरों की तरह !

यादें वहीं खडी रह जाती हैं रूके रास्तों की तरह !!

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शहर के शहर बंद हैं, हर गली में नाकाबंदी है !

तुम पता नहीं किन रस्तों से चले आते हो ख़्यालों में !!

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