साठ के ठाठ

जीने की असली उम्र तो साठ है।
बुढ़ापे में ही असली ठाठ है।।
न बचपन का होमवर्क,
न जवानी का संघर्ष,
न 40 की परेशानियां,
बेफिक्रे दिन और सुहानी रात है।
जीने की असली उम्र तो साठ है।

बुढ़ापे में ही असली ठाठ है।।
न स्कूल की जल्दी,
न ऑफिस की किट किट,
न बस की लाइन,
न ट्रैफिक का झमेला,
सुबह रामदेव का योगा,
दिनभर खुली धूप ,
दोस्तों यारों के साथ राजनीति पर चर्चा आम है,
जीने की असली उम्र तो साठ है।

बुढ़ापे में ही असली ठाठ है।।
न मम्मी डैडी की डांट ,
न ऑफिस में बॉस की फटकार,
पोते-पोतियों के खेल,
बेटे-बहू का प्यार,
इज्जत से झुकते सर ,
सब के लिए आशीर्वाद और दुआओं की भरमार है।
जीने की असली उम्र तो साठ है।

बुढ़ापे में ही असली ठाठ है।।
न स्कूल का डिसिप्लिन,
न ऑफिस में बोलने की कोई पाबंदी,
न घर पर बुजुर्गों की रोक टोक,
खुली हवा में हंसी के ठहाके,
बेफिक्र बातें, किसी को कुछ भी कहने के लिए आज़ाद हैं ।
जीने की असली उम्र तो साठ है।
बुढ़ापे में ही असली ठाठ है।।
सभी सेवानिवृत्त आदरणीय बंधुओं को सादर

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