गीत मेरे गीत ले चले हैं अमराइयों के गाँव , ठहरी ठहरी झील घने पेड़ों की छाँव मेरे गीत ले चले हैं अमराइयों के गाँव - - - - - - ठंडी ठंडी रेत बहती , हौले हौले नदिया फैली , दूर तक पर्वत मालाएं , मस्त मस्त डोले पवन , पेड़ों पे झुकता गगन , और गले मिलती लताएं , पायल संग बीत गए , गोरिया के पाँव , मेरे गीत ले चले हैं अमराइयों के गाँव - - - - - - धूल का श्रृंगार किये , मेहनत का बोझ लिए , खेतों में काम करती टोली , गुमसुम सी द्वार खड़ी , राह तके प्रीतम की , गोरी की दो अँखियाँ भोली , यूँ साथी प्रीत पले तारों की छाँव , मेरे गीत ले चले हैं अमराइयों के गाँव - - - - - - पीपल की छाँव तले कितने अरमान पले , बचपन से यौवन के अंगना , झूलों की पैंग मची , गीतों की धूम बजे , नाज़ुक़ कलइयन के कंगना , सतरंगी सपने सजे , पनघट की छाँव , मेरे गीत ले चले हैं अमराइयों के गाँव - - - - - - फागुन की ऋतु आई , झूम उठी पुरवाई , खेतों ने ली अंगड़ाई , कुहू कुहू हर डाली , कोयलिया मतवाली , गीतों में संदेसा लाई , प्रीतम संग खेल लेत उल्फ़त का दांव , मेरे गीत ले चले हैं अ