ग़ज़ल
*ग़ज़ल*
दूर जाकर, बच-बचाकर, छुप-छुपाकर देखना।
कर गया जादू तेरा आँखें झुकाकर देखना॥
हो कोई शिकवा, शिकायत या कि हो नाराज़गी,
मुझको जब भी देखना बस मुस्कुराकर देखना।
इश्क करने का हुनर भी आ ही जाएगा तुझे,
दिल लगाना हो तो मुझसे दिल लगाकर देखना।
तेरी तस्वीरों से ही कमरा मेरा रंगीन है,
देखना चाहो तो आओ खुद ही आकर देखना।
आज भी वो सीन मेरे मन पे है छाया हुआ,
चोरी-चोरी वो तेरा घूँघट उठाकर देखना।
*-जितेन्द्र कुमार*
*(आज़मगढ़)*
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