GHAZAL-ANGDAI BHI LENE NA PAYE-NIZAM RAHI
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ !
देखा मुझे तो छोड़ दिए मुस्करा के हाथ !!
बेसाख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गईं !
क्या मुंह पे उसने रख लिए, ऑंखें चुरा के हाथ !!
वो जानुओं में सीना छुपाना, सिमट के हाथ !
और फिर संभालना वो दुपट्टा, छुड़ा के हाथ !!
देना वो उसका साग़र-ए-मय याद है, निज़ाम !
मुंह फेर कर उधर को, इधर को बढ़ा के हाथ
~ निज़ाम राही
जन्म - १८१९, रामपुर
उस्ताद - शेख़ अलीबख्श बीमार
मृत्यु - १८६९ , रामपुर
रचना - दीवाने निज़ाम
बेसाख़्ता=अकस्मात्, जानुओं = घुटनो में
सागरे मय - मदिर का प्याला
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