GHAZAL- KAAM AA SAKI NA APNI WFAYEN TO KYAA KAREN - AKHTAR SHEERANI



अख़्तर शीरानी
नाम : मोहम्मद दाऊद खाँ
जनम : ०४, मई १९०५, टौंक
मृत्यु: ०९, सितम्बर, १९४८, लाहौर
रचनाएँ: सुब्हे बहार, अख़्तरीस्तान , शहनाज़  आदि
उस्ताद : ताजवर नजीबाबादी

काम आ सकी न अपनी वफ़ाएं, तो क्या करें !
इक बेवफा को भूल न जाएँ तो क्या करें !!
मुझको ये  ऐतिराफ़, दुआओं में है असर !
जाएँ न अर्श पर जो दुआएं तो किया करें !!
इक दिन की बात हो तो उसे भूल जाएँ हम !
नाज़िल हो दिल पे रोज़ बालाएं, तो क्या करें !!
शब् भर तो उनकी याद में तारे गिना किये !
तारे से दिन को भी नज़र आएं, तो क्या करें !!
अहदे तरब की याद में रोया किये बहुत !
अब मुस्करा के भूल न जाएँ तो क्या करें !!
अब जी में है कि उनको भुला कर ही देख लें !
वो बार बार याद जो आएं तो क्या करें !!
तर्क़े वफ़ा भी जुर्मे मोहब्बत सही अख़्तर !
मिलने लगे वफ़ा की सजाएं, तो क्या करें !!
( अतिराफ़-स्वीकार हैं, अर्श पर - सातवें आसमान यानी ख़ुदा के पास,
नाज़िल - गिरना, शब भर- रात भर,अहदे तरब की - आनंदित समय या
वायदे की प्रतिज्ञा की , तर्के वफ़ा- प्रेम विच्छेद )

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