ROOH-E-SHAYARI
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता
– बशीर बद्र
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फ़क़ीर मिज़ाज हूँ मैं अपना अंदाज़ औरों से जुदा रखता हूँ !
लोग मस्जिद में जाते हैं मैं अपने दिल में ख़ुदा रखता हूं !!
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कितनी क़ातिल है ये आरज़ू ज़िंदगी की,
मर जाते है किसी पर लोग जीने के लिए
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रख हौसला वो मंजर भी आयेगा,
शराबी के पास चल के शराब भी आएगी,
थक कर न बैठ ऐ मंज़िल के मुसाफिर,
शराब भी मिलेगी और पीने का मज़ा भी आयेगा ।
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‘बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला’
- हरिवंश राय बच्चन
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किस ज़रूरत के भला पेश ए नज़र खोल दिए,
क़ैद चिड़ियों को रखा,बाज़ के पर खोल दिए ,
ऐ ख़ुदा मंदिर ओ मस्जिद में लगाकर ताले,
आज सरकार ने मयखानों के दर खोल दिए
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ख़ौफ़ ने सड़कों को वीरान कर दिया,
वक़्त ने ज़िंदगी को हैरान कर दिया
काम के बोझ से दबे हर इंसान को,
आराम के अहसास ने परेशान कर दिया
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खुदा के फैसलों पर शक नहीं करते,
सजा मिली है तो गुनाह जरुर किये होंगे ।
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उम्र भर चलते रहे, मगर कंधो पे आए कब्र तक,
बस कुछ कदम के वास्ते गैरों का अहसान हो गया ।
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उम्र होती है पुरानी हर दिन,
तजुर्बा रोज़ नया होता है !
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ख्वाहिश यह बेशक़ नहीं है कि तारीफ हर कोई करें
मगर कोशिश यह जरूर है, कि कोई बुरा ना कहे
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दारू पीकर लोग जब, करते है संवाद।
हिन्दू मुस्लिम में कभी, होता नहीं विवाद।।
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कोरोना मे दिल खोलकर खर्च कर रही सरकार।
हमने भी सहयोग किया,खरीदी बोतल चार।।
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था तुझे ग़ुरूर ख़ुद के लम्बे होने का ए सड़क,
ग़रीब के हौसले ने तुझे पैदल ही नाप दिया ||
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छोटी सी जिंदगी ने बड़ा
सबक सिखा दिया
रिश्ता सबसे रखो पर उम्मीद किसी से नहीं
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उम्र को हराना है तो हर शौक ज़िंदा रखिये,
दोस्त चंद रखिये, पर चुनिन्दा रखिये !
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लाकडाउन में कहीं लिखके महफूज़ कर लीजिए,
आपकी याददाश्त से ही कहीं निकल न जाएँ हम !
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सोचने से कहाँ मिलते है तमन्नाओं के शहर;
चलने की जिद भी जरूरी है,मंजिलों
के लिए ।
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हुस्न का क्या काम सच्ची मोहब्बत में !
रंग सांवला भी हो तो यार क़ातिल लगता है !!
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हम इजहार करने मे ,थोडे
ढीले हो गए
और इस बीच उन के,हाथ
पीले हो गए
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घायल उस खंजर से नहीं जो मेरी पीठ मे लगा
दर्द तब हुआ जब खंजर वाले हाथ को देखा
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रिश्तों का नूर तो मासूमियत से है,
ज़्यादा समझदारियों से, रिश्ते
फ़ीके पड़ने लगते हैं
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हम भी मौजूद थे तक़दीर के दरवाज़े
पे /
लोग दौलत पर गिरे और हमने तुझे मांग लिया //
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प्यासे के पास
अब के समुन्दर न आएगा
अब चिठ्ठी ले
के कोई कबूतर
न आएगा
तुम इस कदर समाये हो दिल में मेरे सनम
की बाद तेरे
कोई भी अन्दर
न आएगा
- लक्ष्मण दावानी
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न चाहत है न मोहब्बत है ना इश्क़ है न वफा /
जो कुछ भी था मेरे पास वो सब तुमको दे दिया //
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कुदरत का कहर भी जरूरी है, साहिब
हर कोई खुद को खुदा समझने लगा था
•गालिब
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आपकी खामोशी अगर आपकी मजबूरी है
तो रहने दे प्यार भी
इन शायरों से कौन सा जरूरी है
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समंदर की सयाही बनाकर, शुरु किया था लिखना
खत्म हो गई सयाही मगर, मां की तारीफ बाकी है
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आता है मेरे दिल को, आराम मयकदे में,
गुज़री तभी तो मेरी, हर शाम मयकदे में !
~ प्रदीप श्रीवास्तव 'रौनक़ कानपुरी'
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