Sufi Kalam -Aye Mere Dil-E-Nadan, Is Dar Se Na Uth Jana - ए मेरे दिले नादान, इस दर से न उठ जाना
ए मेरे दिले नादान, इस दर से न उठ जाना |
बन जाएगा एक दिन तू , इस
दुनिया में अफ़साना |
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तू उनकी मसीहाई को रोज़ सदा देना |
फ़रियाद के शोलों को कुछ और हवा देना |
कहना कि ख़ुदा मेरे मरते को जिला देना |
उम्मीद के कांधे से ये सर न हटा देना |
बेकार न जाएगा आहों का ये नज़राना
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ए मेरे दिले नादान, इस दर से न उठ जाना |
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ये दिल की लगी तेरी बर्बाद न जायेगी |
बुझती नहीं ये शम्मा लौ और बढायेगी |
मिलने कि तलब उनसे कुछ रंग तो लाएगी |
ये आस न छूटी तो आकाश दिखायेगी |
मिलता है सनम इक दिन छुट जाए न मैखाना |
ए मेरे दिले नादान, इस दर से न उठ जाना |
बन जाएगा एक दिन तू , इस
दुनिया में अफ़साना |
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कलाम
हज़रत मंज़ूर आलम शाह
'कलंदर मौजशाही'
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