ROOH-E-S HAYARI
मेरी आँखें बन चुकी हैं भिक्षापात्र !
ये बस मांगती रहती हैं दीदार तेरा !!
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तुम मौसम की तरह बदल रही हो
मैं फसल की तरह
बर्बाद हो रहा हूं
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झाँक कर के गरेबाँ भी देखो,
सबपे ऊँगली उठाना बुरा है !
- फिरोज़
खान अल्फ़ाज़
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खुश फ़हमियां तमाम हुई असलियत खुली
मुझसे मिला दिया मुझे
तन्हाई शुकरिया
- असद
अजमेरी
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ये सच कहा है कि हर इक मुक़ाम चलता है,
ज़मीं मकान चले, और बाम चलता है,
तमाम लोग ज़मीं पर अज़ल से आये गए,
किसी किसी का ज़माने में नाम चलता है,,
- अक्स
वारसी
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रात क्या गयी सितारे चले गये,
गैरों से क्या गिला जब हमारे चले गये,
जीत सकते थे कई बाज़ियां हम भी,
मगर अपनों को जिताने के लिये हम हारे चले गये !
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उन्हें ये शिकवा के हम उन्हें समझ न सके..
और हमें ये नाज़ के हम जानते बस उन्ही को ही थे.
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उठाना खुद ही पडता है थका टूटा बदन अपना,
जब तक साँस चलती है कोई कंधा नहीं देता...!
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बहुत तारीफ करता था मैं उसकी बिंदी की
लफ़्ज कम पड़ गए जब
उसने जूमके पहने !
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फ़ीकी चुनरी देह की, फ़ीका
हर बंधेज..!
जिसने रंगा रूह को, वो सच्चा रंगरेज
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नशीली आँखों से वो जब हमें देखते हैं
हम घबराकर ऑंखें झुका लेते हैं
कौन मिलाए उनकी आँखों से ऑंखें
सुना है वो आँखों से अपना बना लेते है
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