ROOH-E-SHAYARI ( AAJ KE 21 SHER


21 
ए इश्क़ तेरा वकील बन के बुरा किया मैंने !

यहाँ हर शायर तेरे ख़िलाफ़ सबूत लिए बैठा है !!

20 
मेरी रूह ग़ुलाम हो गई है तेरे इश्क़ में शायद,

वरना यूँ छटपटाना मेरी आदत तो न थी !!

19 
नदी के, झील के, दरिया के बस की बात ये कब थी।

हम अपनी प्यास को इक उम्र से दिल में छुपाए हैं।।

18 
जख्म छुपाना भी एक "हुनर" है

वरना नमक तो हर "मुठ्ठी" में है

17 
इतनी सी जिंदगी है पर ख्वाब बहुत हैं

जुर्म तो पता नहीं साहब, पर इल्जाम बहुत है

16 
कर लिया करो सुबह सुबह माँ के चेहरे की ज़ियारत !

पता नहीं तुम्हे हज का मौका मिले न मिले !

15
जिन्दा जिस्म की कोई अहमियत नहीं,

मजार बन जाने दो, मेले लगा करेंगे !!

14 
कभी नफरत कभी चाहत से मुझे देखता है

देखने वाला ज़रूरत से मुझे देखता है !!

13 
दोस्तों की महफ़िल सजे ज़माना हो गया,

लगता है खुल के जीना एक फ़साना हो गया।

काश फिर मिल जाए वो काफिला दोस्तों का,
खुशी का जाम पिए एक ज़माना हो गया।
12 
कांच पर पारा चढ़ा दो तो आइना बन जाता है    
और किसी को आइना दिखा दो तो पारा चढ़ जाता है।
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11 
उसकी ख़ुशबू का ज़िक्र निकले तो,

फूल उठ कर सलाम करते हैं !

- असलम रशीद
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10 
तू मेहनत इतनी खामोशी से कर कि,

 तेरी कामयाबी शोर मचा दे
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मैं नहीं चाहता तुम टूट  के चाहो मुझको,

मैं चाहता हूँ मैं  टूटा तो जोड़ देना मुझे !

- असद अजमेरी
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मैंने जब भी जाने की इजाज़त माँगी,

उन्होंने ज़ुबाँ से हाँ कह के, निगाहों से रोक लिया
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लोग हर मोड़ पर रुक रुक कर सम्हलते क्यों हैं !

इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यों हैं !
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जुबां को रोको तो आंखों में झलक आता है,

 यह जज्बा-ए-इश्क को सब्र कहां आता है

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रेस चाहे गाड़ियों की हो या ज़िंदगी की,

जीतते वही लोग हैं, जो सही वक़्त पे गियर बदलते हैं.
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सोचता हूं, हर कागज पर तेरी तारीफ करूं,

फिर ख्याल आया, कहीं पढ़ने वाला भी तेरा दीवाना ना हो जाए
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ऐ उड़ते परिंदे कुछ तो दुआ दे खुले आसमान की,

पिंजरे का दर्द क्या है अब समझ चुका है इंसान भी !
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थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब

वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब

- मोमिन
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तिरंगे ने मायूस होकर सियासत से पूछा यह क्या हाल हो रहा है
लहराने में कम और कफ़न में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा हमारा
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