ROOH-E-SHAYARI आज के 21 शेर
1
लफ्ज़-ए-तसल्ली तो एक तक़ल्लुफ़ है दोस्तों,
जिसका दर्द, उसी का दर्द,
बाक़ी सब तमाशाई
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2
सावन की बूंदों में झलकती है उनकी तस्वीर,
आज फिर भीग बैठे हैं उन्हें पाने की चाहत में।
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3
निगाहें नाज़ करती
हैं फलक के आशियाने से !
ख़ुदा भी रुठ जाता है किसी का दिल दुखाने से ।
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4
हमने भी मुआवज़े की अर्जी डाली है साहिब,
उनकी यादों की बारिश ने खूब तबाह किया है भीतर तक
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5
चाहत है या दिल्लगी या यूँ ही मन भरमाया है,
याद करोगे तुम भी कभी किससे दिल लगाया है।
6
मेरी गुस्ताखियों को आप माफ़ करना दोस्तों,
मै आपको आपकी इजाजत के बिना भी याद करता हूँ
7
कुछ इस अदा से सुनाना हाल-ए-दिल हमारा उसे !
वो खुद ही कह दे
किसी को भूल जाना बुरी बात है !!
8
याद आई वो पहली बारिश,
जब तुझे एक नज़र देखा था
-
नासिर काज़मी
9
अल्फाज सिर्फ तकलीफ देते हैं,
खामोशियां जान ले लेती है
10
खुल सकती
हैं गाँठें, बस जरा से जतन से !
मगर लोग
कैंचियाँ चला कर, सारा फ़साना ही बदल देते हैं !!
11
कह रहा है
सकिया घर में रहो,
बन्द है सब
मैकदा घर में रहो,
देख कर आबो-हवा घर मे रहो,
खाओ पीओ लो
मज़ा घर मे रहो,,
12
बैठ कर कमरे
में पी लो शौक़ से,
आ गयी
है आपदा घर में रहो,,
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जिनमें
अकेले चलने के हुनर होते हैं,
आखिर में,
उन्ही के पीछे काफिले होते हैं
13
अगर नियत
अच्छी हो तो,
नसीब कभी
बुरा नहीं होता
14
बेवक्त
बेवजह बेअसर सी बेरुखी तेरी,
फिर भी
बेइंतेहा तुझे चाहने की बेबसी मेरी
15
गुजर जाएगा
यह वक्त भी जरा सब्र तो रख,
जब खुशी ही
नहीं ठहरी तो गम की क्या औकात
16
सोचते हैं
आजकल,वो हिरासत में है,
कोई समझाए
उन्हें, वो हिफ़ाज़त में है !
17
अपने कदमो
में मेरा सर ये झुका रहने दो,
दर पे अपने हमको
यूँ ही पड़ा रहने दो
कुछ निगाहें
करम हम पे भी कर दे अपने,
मुझे दिल में
अपने यूँ ही बना
रहने दो
-
लक्ष्मण दावानी
19
कुछ लोग
थाली पीटकर बदनाम हो गए,
कुछ
डॉक्टरों को पीटकर भी मासूम बने रहे!
20
वो क्या
समझेंगे उजालों के हुस्न को,
जो लोग
अंधेरों से कभी सोहबत नहीं करते !
-
फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
21
इश्क़ गुनाह
है तो हम काफ़िर बेहतर,
इश्क़ मर्ज़
है तो फ़िर शिफ़ा क्या है !
-
फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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बिन बोले
जिसे सब समझ जाते थे,
बे-लफ्ज़ वही
बचपन की ज़बाँ चाहिए !
-
फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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