ROOH-E--SHAYARI आज के 21 शेर
तुम पाँव तो रख्खो दहलीजे दिल पे
हमारे,
लाखों चिराग जलायेंगे हर आहट पे
तुम्हारी
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इस
दौरे सियासत मे ,एक ये भी सियासत है।
न बोलो तो मुसीबत है,
और बोलो तो बगावत है।
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सदायें एक सी ,
यकसानीयत में डूब जाती हैं
ज़रा सा मुख़्तलिफ़ जिस ने पुकारा,
.याद रहता है.
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तुम्हारी आँख के आँसू हमारी आँख से
निकले
तुम्हे फिर भी शिकायत है मोहब्बत
हम नहीं करते
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मैं तुम्हे याद नहीं करता…
तुम मुझे याद हो गए हो।।
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इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती
है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो
देती है
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जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा
कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
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जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती
है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती
है
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ऊपर जिसका अंत नहीं, उसे आसमां कहते हैं
इस जहां में जिसका अंत नहीं, उसे माँ कहते हैं
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चलती फिरती आंखों से,
अजा देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी,
लेकिन मां देखी है
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यहां मेरा कोई अपना नहीं
चलो अच्छा है,
कुछ खतरा नहीं
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एक तेरा ख़याल ही तो है मेरे पास.!!
वरना कौन अकेले में मुस्कुराता है?
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शोर कब तक मचाएगा
आख़िर चढ़ता दरिया उतर ही जायगा
थोड़ी हिम्मत रखो,
बूरा ही सही
वक़्त ये भी गुज़र ही जायगा
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मन की ये बैचेनियां,
शब्दों का ये मौन,
आंखों की ये वीरानियां ,तुम बिन समझे कौन
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मालूम सबको है,कि जिंदगी बेहाल है!
लोग फिर भी पूछते हैं,और सुनाओ क्या हाल है!!
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नाकामियों की बाद भी हिम्मत वही
रही
ऊपर का दूध पी के भी ताक़त वही रही
शायद ये नेकियाँ हैं हमारी कि हर
जगह
दस्तार के बग़ैर भी इज़्ज़त वही
रही
मैं सर झुका के शहर में चलने लगा
मगर
मेरे मुख़ालिफ़ीन में दहशत वही रही
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वो इस चाहत में रहते है साहब कि हम
उनको माँगे,
और हम इस ग़ुरूर में रहते है कि हम
अपनी ही चीज़ क्यों माँगे .
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बादलों का गुनाह नहीं की वो बरस गए
दिल को हल्का करने का हक तो सबको
है
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हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक
आ गए
हम नज़र तक चाहते थे तुम तो जाँ तक
आ गए
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रिश्तों के धागों की गाँठें नहीं खुलतीं मुझसे।
मुझको तरकीब सिखा दे मेरे मौला कोई।।
- अरुण सरकारी
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अगर हमें देखना ही है तो हमसे
मिलानी होगी नजर,
यह क्या कि निहारते तो हो मगर जब
मेरी नजर होती है उधर
- राज गोपाल मल्होत्रा
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