ग़ज़ल -खिले हैं फूल गुलशन मे तबीयत मुस्कराई है ! - प्रदीप श्रीवास्तव 'रौनक़'


ग़ज़ल

खिले हैं फूल गुलशन मे तबीयत मुस्कराई है !
बहारों का खज़ाना ले के तेरी याद आई है !!

मुझे वो देखते हैं खिड़कियों से झांक लेते हैं !
कुछ ऐसा लग रहा है अब मोहब्बत रंग लाई है !!

सुरूर आँखों मे है, दिल मे नशा है पाँव बोझल हैं !
ना जाने किस नज़र से साक़िया तूने पिलाई है !!

तेरी महफ़िल  मे रौनक़ थी बहुत रौनक़  से पहले भी !
मगर महफ़िल की रौनक़ और रौनक़ ने बढ़ाई है !!
- प्रदीप श्रीवास्तव 'रौनक़'

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