ROOH-E-SHAYARI - आज के 21 शेर


1
ए सुबह तुम जब भी आना, सब के लिए बस खुशियाँ लाना,
हर चेहरे पर हंसी  सजाना,हर आँगन में फूल खिलाना
2
उफ़ परेशान ग़म के मारे लोग,

दरबदर फिर रहें हैं सारे लोग ।
शर्म अब भी नहीं है कहते हो,
ये हमारे हैं वो तुम्हारे लोग ।
- एजाज़ उल हक़ "शिहाब"
3
काश मिल जाय हमें कोई कोई  मनाने वाला
रूठ जाने का मज़ा  हम भी उठायें   इक दिन
- असद अजमेरी
4
दुख की तपती दोपहरी के बाद मिलेगी ठण्डक भी
यह विश्वास दिला जाते हैं ये दीवारों के साये
- दरवेश भारती
5
आदतन यूँ सोचता है हर कोई
उसके साये से नहीं बेह्तर कोई
- डॉ. दरवेश भारती
6
करके दिखा दिया है जो 'दरवेश' प्यार ने
वो काम काइनात में दौलत न कर सकी
- डॉ दरवेश भारती
7
वो ऊपर उठने की कोशिश करे हज़ार भले
ज़मीं, ज़मीं है रहेगी ये आसमां के तले
- डा  दरवेश भारती
8
जो छाँव औरों को दे ख़ुद कड़कती धूप सहे
किसी किसी को ख़ुदा यह कमाल देता है
- डा दरवेश भारती
9
 निखरते हैं वही कुंदन की तरह जीवन में
जो जिद्दो-जहद की भट्टी में तपते रहते हैं
- डा दरवेश भारती
10 
 जब महब्बत का किसी शय पे असर हो जाए
एक वीरान मकां बोलता घर हो जाए
- डा दरवेश भारती
11 
मेरी औक़ात से बढ़कर मुझे देना न कुछ मालिक
ज़रूरत से ज़ियादा रोशनी बेनूर करती है
- डा दरवेश भारती
12 
ज़िन्दगी जीने का जिसने भी हुनर सीख लिया
मस्अला कोई भी उसके लिए मुश्किल है कहाँ
- डा दरवेश भारती
13 
 जितना भुलाना चाहें भुलाया न जाएगा
दिल से किसी की याद का साया न जाएगा
- डा दरवेश भारती
14 
जो ताल्लुक है चमन में फूल का खुशबू के साथ॥
है वही रिश्ता मुसलमाँ का यहाँ हिंदू के साथ॥

है वही निस्बत हमारी सरज़मींन ए हिंद से ॥
जो है निस्बत शायरी में मीर की उर्दू के साथ ॥

आरज़ी है हुस्न ए दुनिया दर हक़ीक़त दोस्तों॥
इसलिए ही आम्रपाली चल पड़ी भिक्षु के साथ ॥

लड रहे थे जंग दोनों मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में ॥
में था हक़ के साथ और वो क़ुव्वत ए बाज़ू के साथ॥

जिस तरह से चाँद चमके बदलियों के बीच में ॥
इस तरह चेहरा था रौशन तुर्रे ए गैसु के साथ ॥

कल जिसे मैंने सिखाये थे अलिफ़ बे ते बिलाल ॥
बात वो करता है मुझसे आज कल बे तू के साथ॥
बिलाल सहारनपुरी
15
आंधियां  अगर  मेरा एक दिया  बुझाती हैं,
हम भी एहले हिम्मत हैं सौ दिये जलाते हैं।
16 
 हमने गुपचुप कोई बात की
उधर कान बनने लगी खिड़कियाँ
- डा दरवेश भारती
17 
गर सीख न लेंगे बातों से,
सुधरेंगे नहीं हम हालातों से,
गर कुछ हादसे हो जाएंगे,
सारी जिंदगी तडपाएँगे।।
18 
 कह दो इन कोरोना के अंधेरों से, कहीं और घर बना ले
मेरे मुल्क में रोशनी का सैलाब आया है
19 
 पंछी खुली हवाओं में उड़ते हैं आजकल !
इंसा का  हाल  क्या कहें इन्सान  क़ैद है !
~असदा अजमेरी
20 
तुम तो रूह ए खुशबू हो,
तुम्हे कैसे मै गिरफ्तार करूँ
21
रावण को ज्ञान का अंहकार था,
राम को अंहकार का ज्ञान था 
































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