ROOH-E-SHAYARI



खौफ़ तो आवारा कुत्तों को रहता है !
शेरों की तो दहशत होती है !!
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रहिमन वहाँ न जाइए, जहाँ जमें हों लोग ।
ना जाने किस रूप में, लगे कोरोना रोग.  ।।
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फफक कर रो पड़ी एक दूसरे के हालात पर ।

मज़हब और इंसानियत की जब मुलाक़ात हुई,!
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मौत  आनी है  वो आएग मेरे मौला मगर,

मौत से पहले सिखा दे ज़िन्दगी जीना मुझे!
-असद अजमेरी
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बहुत 'मुश्किल' है 'यहाँ' 'सभी' को 'खुश' रखना..

'चिराग' 'जलाते' ही 'अंधेरे' 'रूठ' जाते हैं..
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इश्क-ऐ-दरिया में हम डूब कर भी देख आये ।

वो लोग मुनाफे में रहे, जो किनारे से लौट आए ।
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गलत फहमियों की हद पता है कब हुयी जब मैंने कहा ।

रुको मत जाओ,और उसने सुना- रुकोमत जाओ ।
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सोच कर रखना हमारी सल्तनत में क़दम,

हमारी मोहब्बत की क़ैद में ज़मानत नहीं होती ।
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हर दर्द का इलाज़ मिलता था जिस बाज़ार में,

मुहब्बत का नाम लिया तो दवाख़ाने बन्द हो गये
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तुम ने जिंदगी का नाम तो सुना ही होगा,

मैंने अक़्सर तुम्हे पुकारा हैं उस नाम से ।
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इज़्हार-ए-इश्क़ की ख़ातिर कई अल्फ़ाज़ सोचे थे,

ख़ुद ही को भूल बैठे हम, जब तुम सामने आये !!
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इबादत वो है जिसमे जरूरतों का ज़िक्र न हो !

सिर्फ़ उसकी रहमतों का शुक्र हो !!
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बहुत आसान है इश्क़ में हार के खुदखुशी कर लेना

कितना मुश्किल है यहा जीना ये हमसे भी पूछ लेना
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तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी

कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो
- जौन एलिया
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कोई सदमा हो, ज़रूरी तो नहीं,

यूँ ही बे-वजह रोने को जी चाहता है !
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दिल से बड़ी कोई क़ब्र नहीं है

रोज़ कोई ना कोई एहसास दफ़न होता है
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हर रिश्तों में मिलावट देखी ।

कच्चे रंगों की सजावट देखि !!
ना उसके चेहरे पर थकावट देखी !
न ममता में कोई मिलावट देखी !

कैदखाने हैंबिन सलाखों के

 कुछ यूं ही चर्चे हैं, आपकी आंखों के
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आदमी आदमी से मिलता है !

दिल मगर कम किसी से मिलता है !!
भूल जाता हूँ मैं सितम उस के !
वो कुछ इस सादगी से मिलता है !!
- जिगर मुरादाबादी
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तबाह कर डाला तेरी आँखों की मस्ती ने,

हजार साल जी लेते अगर दीदार ना किया होता तो !
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फरियाद कर रही हैं यह तरसी हुई निगाहें

देखे हुए किसी को बहुत दिन गुजर गए
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दवा असर न करे तो नज़र उतारती है !

माँ है जनाब वो कहाँ हार मानती है !!
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जरुरी नहीं है कुछ तोड़ने के लिए पत्थर ही मारा जाए।

अंदाज बदल कर बोलने से भी बहुत कुछ टूट जाता है।
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सख्त रास्तों पे भी आसान यह सफर लगता है

ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है.
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आखिर इंसान है !

परतों में खुलता है !!
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बरस रही थी बारिश बाहर

और वो भीग रहा था मुझ में
- नज़ीर क़ैसर
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आज भी कितना नादान है दिल समझता ही नहीं,

बाद बरसों के उन्हें देखा तो दुआएँ माँग बैठा ।

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