ROOH-E-SHAYARI



मैं तुझ को ढूंढता था तेरी रहमतों से पहले

मुझे कौन जानता था तेरी बंदगी से पहले
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चुप नही हूं, की लफ़्ज कम है

चुप हूँ, की लिहाज़ बाकी है
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दुश्मनों ने तो दुश्मनी की है

मगर दोस्तों में क्या कमी है
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मिल जाएं ग़र दो बूँद तेरे इश्क़ की जान,

मेरे सारे मर्ज दुरूस्त हो जाएं !
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हजारों बार मरना चाहा निगाहों मेंडूब कर


वो  निगाहें झुका लेते हैंहमें मरने नहीं देते
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ताल्लुक हो तो रूह से रूह का हो,

दिल तो अक्सर एक दूसरे से भर जाया करते है
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प्यार  ज्यादा  नही  ज़रा  दे  दो,

ज़ख्म फिर कोई  तुम हरा दे दो !
प्यासे  हैं  एक  अरसे  से  यारा,
अपने आँखों का मयकदा दे दो !
- लक्ष्मण दावानी
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हादसों कि ज़द पे है तो मुस्कुराना छोड़ दें

ज़लज़लों के खौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
बारिशें दीवार धो देने की आदि है तो क्या
हम इसी डर से तेरा चेहरा बनाना छोड़ दें
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यादों में तेरी याद क्या याद थी कुछ याद नही ?


तेरी याद में सब कुछ भूल गए,क्या भूल गए कुछ याद नहीं 

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उनकी आंखें सवाल करती हैं
 मेरी हिम्मत जवाब देती है
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मासूम मैंखानों  पर ही हुकूम-ए-रूसवा क्यों
शराबी आंखों पर भी पाबंदी होनी चाहिए
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दर्द बढ़ रहा है तो बढ़ने दो शायर ;
खुशहाली में कोई कलम नहीं थामता ।
-मिलन
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