ROOH-E-SHAYARI



रुलाया ना कर हर बात पर ए जिंदगी
जरूरी नहीं सबकी किस्मत में चुप कराने वाले हो
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मतलब की बात सब समझते हैं लेकिन

 बात का मतलब कोई नहीं समझता
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कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो

 कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो
 रिश्ते तो मिलते हैं मुक़द्दर से
 बस उन्हें खूबसूरती से निभाना सीखो
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                      यक़ीन करें, साहब            
          यक़ीन ने मारा है

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सुना ये था, के  साहब आप  तो मसरूफ़  रहते  हो !

कहां से मिल गयी फ़ुरसत ये मुझको भूल जाने की !!
- असद अजमेरी
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हज़ार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ाएब

ये किस ख़राबे में दुनिया ने ला के छोड़ दिया
~ शहज़ाद अहमद
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कौन कहता है के दूरी से मिट जाती है मोहब्बत

मिलने वाले तो ख्यालों में भी मिला  करते हैं
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सबूतों की जरूरत पढ़ रही है

 यानी रिश्तो में दूरी बढ़ रही है
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नींद आती ही नहीं धड़के की बस आवाज़ से

तंग आया हूँ मैं इस पुरसोज़ दिल के साज से

दिल पिसा जाता है उनकी चाल के अन्दाज़ से
हाथ में दामन लिए आते हैं वह किस नाज़ से

सैकड़ों मुरदे जिलाए ओ मसीहा नाज़ से
मौत शरमिन्दा हुई क्या क्या तेरे ऐजाज़ से

बाग़वां कुंजे कफ़स में मुद्दतों से हूँ असीर
अब खुलें पर भी तो मैं वाक़िफ नहीं परवाज़ से

कब्र में राहत से सोए थे न था महशर का खौफ़
वाज़ आए ए मसीहा हम तेरे ऐजाज़ से

बाए गफ़लत भी नहीं होती कि दम भर चैन हो
चौंक पड़ता हूँ शिकस्तः होश की आवाज़ से

नाज़े माशूकाना से खाली नहीं है कोई बात
मेरे लाश को उठाए हैं वे किस अन्दाज़ से

कब्र में सोए हैं महशर का नहीं खटका ‘रसा’
चौंकने वाले हैं कब हम सूर की आवाज़ से
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जो फुर्सत मिले तो मुड़कर देख लेना मुझे एक दफ़ा ,

तेरे आंखो से घायल होने की चाहत मुझे आज भी है..!!
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ना कोई इलाज, ना टीका ना इसकी कोई दवाई है

ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है
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तेरा चेहरा हैं जब से मेरी आँखों मैं,

लोग मेरी आँखों से जलते हैं..।
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हुस्न भी तेरा,अदाएं भी तेरी,नखरे भी तेरे,शोखियां भी तेरी,

 कम से कम इश्क तो मेरा रहने दो
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छोडने वाले छोड़ जाते हैं मुक़ाम कोई भी हो...
निभाने वाले निभा जाते हैं हालात कैसी भी हो...!!
कब का निकाल देता इस दिल से मगर..

सरकार ने कहा है जो जहाँ है वो वहीं रहे
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कहीं दिरहम, कहीं डॉलर, कहीं दीनार का झगड़ा

कहीं लहँगा, कहीं चोली, कहीं शलवार का झगड़ा
वो मस्जिद हो कि मंदिर हो, अदब हो या सियासत हो
वही है जंग कुर्सी की, वही दस्तार का झगड़ा
- ज़फ़र कमाली
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कभी ग़म तो कभी तन्हाई मार गयी,

कभी याद आ कर उनकी जुदाई मार गयी,
बहुत टूट कर चाहा जिसको हमने,
आखिर में उनकी ही बेवफाई मार गई
-= - - -
अय दौरे मुश्किलात तेरा शुक्रिया कि तू

चेहरों से  दोस्तों के नक़ाबें उलट गया
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धोखे की एक ख़ासियत होती है,

इसे देता कोई ख़ास ही है !
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मेरा आक़ीदा है तो इबादत करता हूँ,

नज़र से ख़ुदा को देख पाता कौन है ?
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
- - - 
मैं उसको सेनिटाइजर भेजता रह गया

वो किसी और के साथ क्वारेंटाईन हो गयी
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मोहब्बत आजमाना हो तो बस इतना ही काफी है

जरा सा रूठ कर देखो कौन मनाने आता है
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फूल तो दो दिन बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखला गए

हसरत उन ग़ुंचों पे है जो बिन खिले मुरझा गए
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
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माना वो किसी और से मंसूब है, लेकिन

मेरे तो हर इक शेर में वो अब भी मेरा है
- असद अजमेरी
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कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई

तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
- जौन एलिया
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यह आईने नहीं दे सकेंगे तेरे हुस्न की खबर

कोई मेरी आंखों से आकर पूछे के कितने हसीन हो तुम
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जो मेरे शहर में तेरा दर हो तो मेरी फकीरी ही क्या है,

दुनिया मिल जाए तू न मिले तो मेरी अमीरी ही क्या है !
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छूट जाय अगर साथ यहाँ की भीड़ में,
तुम रूह से जुड़े हो फ़िकर मत करना
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होगा कोई तो हमे भी टूट कर चाहने वाला

अब यू हीं सारे का सारा शहर तो बेवफा नही होता
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