ROOH-E-SHAHARI
आसमां में खलबली है, सब पूछ रहे हैं
कौन फिरता है जमीन पे, चांद
सा चेहरा लिए
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खरीद लेंगे सबकी सारी उदासियाँ दोस्तों
सिक्के हमारे मिजाज़ के,चलेंगे जिस रोज
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जब तक तुम्हारे पास पैसा है
लोग पूछेंगे, भाई
कैसा है
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मत करो ज़ुल्म के महल तामीर,
ज़लज़ले बेसबब नहीं आते।
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तुम ही ने सफर कराया था मोहब्बत की किश्ती पर
अब नजरे न चुराओ, मुझे
डूबता देख कर
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अनजान अपने आप से, वो शख्स रह गया
जिसने उम्र गुजार दी, औरों
की फिक्र में
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काश कोई अपना हो, आईने जैसा
जो हंसे भी साथ और
रोए भी साथ
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पूछ रही है आज मेरी हर शायरी मुझसे
कहां गए वह दीवाने जो
वाह-वाह किया करते थे
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ऐ इंसान अब तो मान इस धरा पर तू है मेहमान
ऐ इंसान,अब तो मान प्रकृति का, होना चाहिये सम्मान
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चापलूसी करना कोई आसान काम नहीं
हुनर चाहिए आदमी को दुम
हिलाने के लिए
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मूर्ख के लिए किताबें क्या
अंधे के लिए आईना
क्या
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तेरे हाथों में मुझे अपनी तकदीर नजर आती है
देखू मैं जो भी चेहरा, तेरी
तस्वीर नजर आती है
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चलो सिक्का उछाल के कर लेते हैं फैसला आज
चित आए तो तुम मेरे
और पट आए तो हम तेरे
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बाँध दे कोई काला धागा, नज़र-ए-उलफत का,
बेपनाह इश्क है तुझसे कोई, नज़र
ना लगा दे
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उन से नैन मिलाकर देखो
ये धोखा भी खा कर देखो
किसी अकेली शाम की चुप में
गीत पुराने गाकर देखो
- मुनीर
नियाज़ी
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रूह के दामन से अपनी दुनिया-दारी बाँध कर
चल रहे हैं दम-ब-दम आँखों पे पट्टी बाँध कर
ऐ मेरे दरिया अगर कोई भरोसा हो तेरा
छोड़ जाऊँ मैं तेरी लहरों से कश्ती बाँध कर
- खावर’ जीलानी
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ख़ंजर से लकीरों को बदलने चले थे हम,
नादान हथेलियों में कई ज़ख़्म भर गए !
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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मुद्दत से मेहमान
न कोई आया है घर में
हमने कब ऐसा सन्नाटा
देखा है घर में।
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शोख़ नज़रों से वार कर गया
दिल मेरा बेक़रार
कर गया
उसकी सूरत पे तुम न लुटना
मैं तो बस ऐतबार कर, गया
#आसी
यूसुफ़पुरी
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बड़े चुपके से भेजा था मेरे महबूब ने एक गुलाब,
कमबख्त उसकी खुशबू ने, सारे शहर में हंगामा कर दिया
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मासूम मयखानों पर ही,
हुकूमत-ए-रुसवा क्यों
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