ROOH-E-SHAYARI
शायद शायरी इसलिए भी इतनी खूबसूरत होती है,
कभी 'सच' छुपा लेती है, कभी 'शख्स' को छुपा लेती है
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सलीका अदब का तो बरकरार रखिये, ज़नाब !
रंज़िशें अपनी जगह है, 'सलाम' अपनी जगह !!
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मिल जाएंगे हमारी भी तारीफ करने वाले,
कोई हमारी मौत की अफवाह तो फैला दो।
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फ़रिश्ते ही होंगे जिनका हुआ इश्क़ मुक़म्मल !
इंसानो को तो हमने सिर्फ़ बर्बाद होते देखा है !!
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तेरी मोहब्बत को कभी खेल नहीं समझा !
वरना खेल तो इतने खेले हैं कि कभी हारे नहीं !!
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मत पूछो शीशे से उसकी टूटने की वजह,
उसने भी किसी पत्थर को अपना समझा होगा
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अपने मेहमान को पलकों पर बिठा लेती है
गरीबी जानती है कि घर
में बिछौने कम है
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मौसम-ए-इश्क़ है ये ज़रा ख़ुश्क हो जायेगा !
ना उलझा करो हमसे वरना इश्क़ हो जाएगा !!
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अजीब लोग थे, कब्रों पे जान देते थे।
सड़क की लाश का, कोई भी दावेदार ना था।
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ज़िन्दगी ले आई है ऐसे मोड़ पर,
जा भी नही सकते अगले मोड़ तक।।
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मिलने को तो हर शख्स एहतराम से मिला,
पर जो मिला किसी न किसी काम से मिला !
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